गंगवंश और काकतीय वंश (कुर्मियों) द्वारा बनाए गए भव्य मंदिर तथा कुछ कुर्मी राजाओं और नेताओं की सूची

Ravi Gangwar 


अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा,भारत का एक जातीय संगठन है जिसकी स्थापना कुर्मी क्षत्रिय समाज के हितों को बढ़ावा देने के लिए सन् 1910 ई में की गयी थी।[1][2][3]

इस संगठन में कुर्मी, कुनबी, कुणबीपटेल-पाटीदारकापूकम्मा, वेलमा, रेड्डीनायडू, सचान, कटियार, गंगवार, कुनबी-मराठाकुलमी, कुम्भी, कुडुम्बी, कुडुम्बर, वोक्कालिन्गजयसवार /जैसवार, गौड़/गौर, बैस/बैसवार, चनऊ, कनौजिया समसवार, बरगैया/बरगईया, घमैला, कोचैसा, अवधिया, पटनवार, सैंथवार-मॉल, दोजवार, (महतो), मनवा, दिल्लिवार, चंद्राकार, चंद्रनाहू, खंडायत, अथरिया, वर्मा चंद्रवंशी ( चंदेल ),समस्वर (चंद्रवंशी) आदि जातियों के लोग सम्मिलित है। इस संगठन के अधिवेशनों में कोल्हापुर के शाहू जी महाराज जैसे राष्ट्रनायकों की उपस्थिति रही है।

इसका स्थापना 1894 ई में ही माना जाता है। जिसका नायक कैप्टन रामाधीन सिंह जी थे, जो की एक पुलिस अधिकारी थे।[4]

ये कूर्मवंशी क्षत्रिय और लववंशी क्षत्रिय है और कूर्मि प्राचीन क्षत्रिय जाति है।

इसलिए ये भगवान राम के बांसाज हैं!

कुछ इतिहासकार इन्हें भगवान विष्णु के वंशज मानते है क्योंकि कर्मी शब्द कूर्म अवतार से लिया गया है।

इनके कई वंश भी रहे जैसे 1000 ईस्वी में गंगवंश, चोलवंश और काकतीय वंश जो बहुत समय तक भारतीय शासक रहे। इनके समय में ही देश में भव्य मंदिर बने जिनकी संरचना आज भी लोगों को अचंभित करती है।

कुर्मी समाज जो कि भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की प्राचीनतम नश्ल रही है जिसने दक्षिण एशिया पर शासन किया आज हम सभी  जानेंगे कुर्मी सम्राट द्वारा बनाए गए कुछ विराट अद्भुत हिंदू मंदिरों के बारे में जिसका बारे में जानना । हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि आज हम सभी अपने इतिहास को बोल गए हैं



अंकोरवाट
अंकोरवाट दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर जिसका निर्माण कर्म सम्राट सूर्यवर्मन ने कराया था । वर्तमान समय का कंबोडिया जिसे की हमारे हमारे हिंदू पुराणों में कंबोजों से  जोड़ा गया  है वहां पर विश्व का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर अंकोरवाट स्थित है अंकोरवाट का मंदिर पूर्णता विष्णु भगवान को समर्पित था क्योंकि सूर्यवर्मन एक वैष्णव हिंदू थे अंकोरवाट मंदिर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल किया गया है अंकोरवाट भारतीय संस्कृति इतिहास का एक गौरवशाली प्रमाण है जिसे प्रत्येक भारतीय को अवश्य देखना चाहिए। 



बृहदेश्वर मंदिर
तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर विश्व के सबसे बड़े विराट मंदिरों में से एक है इसका निर्माण चोल वंश के राजा राज राज चोलम  प्रथम ने करवाया था बृहदेश्वर मंदिर पूर्णता ग्रेनाइट से निर्मित है ऐसा माना जाता है कि पूरे मंदिर के निर्माण के लिए कुल 130000 टन ग्रेनाइट की आवश्यकता रही होगी यह मंदिर तमिल वास्तुकला श्वेष्टा को दर्शाता है राजा चोलन  प्रथम तथा चोल वंश के सभी शासक शैव हिंदू थे जिसकी वजह से भगवान शिव की आराधना करते थे और बृहदेश्वर मंदिर भी इसी वजह से भगवान शिव को समर्पित था यूनेस्को ने वृद्धेश्वर मंदिर को विश्व धरोहर घोषित किया हुआ है 1 अप्रैल 1954 को आरबीआई द्वारा निकाले गए ₹1000 के नोकट पर पीछे बृहदेश्वर मंदिर का चित्र अंकित था जो कि हमारी संस्कृति व इतिहास को सहेजने का एक बढ़िया प्रयास था। 


हजारा राम मंदिर
विजय नगर के के महान सम्राट राजा कृष्णदेव राय द्वारा हजारा राम मंदिर का निर्माण कराया गया था राजा कृष्णदेव राय दक्षिण के महान हिंदू सम्राट हुए जिन्होंने आक्रमणकारियों द्वारा गिराए गए मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया उनके कार्यकाल के दौरान हजारा राम मंदिर जैसे भव्य मंदिर का निर्माण राजा कृष्णदेव राय भगवान राम के आराध्य  थे। जिसकी वजह से उन्होंने इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया इसका नाम हजारा इसलिए पड़ा क्योंकि इस मंदिर के अंदर हजार स्तंभ है हजारा राम मंदिर विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हंपी में स्थित है जो की तत्कालीन समय की विश्व की सबसे आधुनिक व विकसित नगरी थी हजारा राम मंदिर 21वीं सदी में भी हमें राजा कृष्ण देव राय  के समय की वास्तुकला से परिचित व हमें गर्व की अनुभूति कराता है। 


गंगई गोंडा
गंगई गोंडा गया मंदिर राजा चोलन प्रथम के पुत्र राजेंद्र चोला द्वारा निर्माण किया था था राजेंद्र चोल दक्षिण भारत का पूरे  दक्षिण पूर्वी एशिया पर विजय प्राप्त कर चुके थे वाह बाकी चोल शासकों की तरह हिंदू धर्म को मानते थे अपनी भगवान शिव ने शिव ने ने और आराधना होने के कारण उन्होंने अपने साम्राज्य के दौरान एक महान विराट शिव मंदिर का निर्माण कराया जिसके अंदर विश्व का सबसे बड़ा बड़ा का सबसे बड़ा शिवलिंग है जिसकी लंबाई 4 मीटर है मंदिर की दीवारें चोल संस्कृति को कला को दर्शाते हैं  कलाकृतियां हमें उस समय के महान साम्राज्य के बारे में कई कई सारी जानकारियां भी प्रदान करती है यह मंदिर दक्षिण भारत में स्थित सबसे महान मंदिरों में से एक है जिसका संबंध इतिहास से बहुत ही गहरा है क्या मंदिर चोल साम्राज्य के श्रेष्ठता व विराटता को दर्शाता है। 


सोमनाथ मंदिर
सोमनाथ मंदिर जो कि गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है सोमनाथ मंदिर का एक बहुत बहुत ही बड़ा इतिहास है सोमनाथ मंदिर पूरे हिंदू समाज, हिंदू धर्म पर हुए अत्याचारों को दिखाता दिखाता है हिंदू धर्म के पतन व उत्थान को दर्शाता है मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा  सोमनाथ मंदिर को गिरा दिया गया था यह घटना अत्यंत भयानक व क्रुर है जिस तरीके से आज अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए सालों से इंतजार किया जा रहा है उसी तरीके से सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए भी तारीख पर तारीख आती चली आ रही थी पर भारतवर्ष के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को अत्यंत पीड़ादायक महसूस होता था  सरदार पटेल सोमनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण में एक बड़ा सहयोग दिया तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के पसंद ना होते हुए भी उन्होंने सोमनाथ मंदिर का निर्माण पुनः करवाया सोमनाथ विश्व के प्रत्येक हिंदू के लिए आस्था का प्रतीक है तथा व हिंदुत्व गुजरात के इतिहास को दर्शाने वाला एक एक पात्र भी है भी है जिसका निर्माण कुर्मी पुत्र सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया था आज भी है घटना हमारे समाज के बहुत से युवा नहीं समझते या घटना एक कुर्मी के हृदय में हिंदुत्व अपने देश की संस्कृति के प्रति सम्मान व प्रेम के भाव दिखाता है।

गंगवंश द्वारा बनाए गए मंदिर

गंगवंश के राजाओं ने कई मंदिरों का निर्माण कराया था. इनमें से कुछ मंदिर ये रहे:

कोणार्क सूर्य मंदिर,

कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा के पुरी ज़िले में स्थित है. यह मंदिर 13वीं शताब्दी में बना था. इसका निर्माण पूर्वी गंग वंश के कुर्मी राजा नरसिंह देव प्रथम ने कराया था. 

कपिळास शिव मंदिर, 

पिळास शिव मंदिर, उड़ीसा के ढेकनाल ज़िले में है. इसका निर्माण भी कुर्मी राजा नरसिंह देव प्रथम ने कराया था. 


क्षीरचोरा गोपीनाथ मंदिर,

क्षीरचोरा गोपीनाथ मंदिर, रेमुणा में है. इसका निर्माण भी कुर्मी राजा नरसिंह देव प्रथम ने कराया था. 


चौमुखी महादेव मंदिर,

चौमुखी महादेव मंदिर, एटा ज़िले के रामपुर में है. इसका निर्माण कुर्मी राजा खोर ने कराया था. 


काकतीय वंश के मंदिर

रामप्पा मंदिर
रामप्पा मंदिर का निर्माण 1213 ई. में काकतीय साम्राज्य के शासनकाल के दौरान कुर्मी सम्राट गणपति देव के सेनापति रेचारला रुद्र द्वारा किया गया था। इस स्थान के मुख्य देवता (शिवलिंग) रामलिंगेश्वर स्वामी हैं। इसे 40 साल की मेहनत से बनाने वाले मूर्तिकार के नाम पर रामप्पा मंदिर भी कहा जाता है।

विश्व धरोहर में शामिल हुआ भगवान शिव का ये अलौकिक मंदिर, PM मोदी ने दी बधाई,



कुर्मी जाति के उल्लेखनीय लोग :–


अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा अध्यक्षो की सूची

(1) पहले अधिवेशन अध्यक्ष सन् 1894 में श्री राय सिंह और श्री बाबूगेंदनलाल सिंह उत्तर प्रदेश (फर्रुखाबाद)

(2) सन् 1895 में दूसरे अध्यक्ष श्री बाबू नंदलाल सिंह उत्तर प्रदेश (लखनऊ)

(3) सन् 1896 व 1899 में तीसरे और चौथे अध्यक्ष एडवोकेट श्री बाबू मिथिला शरण सिंह बिहार (पटना)

(4) सन् 1909 में चुनार मिर्जापुर में 5 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री बी. नागप्पा, जज (कर्नाटक)

(5) सन् 1910 में 6 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री कोटारी वेंकट राय नायडू (आंध्र प्रदेश)

(6) सन् 1911 में 7 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री सजीवन लाल सिन्हा पटना (बिहार)

(7) सन् 1912 में 8 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री जे. सी. स्वामीनारायण, (गुजरात)

(8) सन् 1913 में 9 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री विठ्ठल भाई, झाबेर भाई पटेल,(गुजरात)

(9) सन् 1915 में 10 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्रीमंत संपतराव गायकवाड़, (गुजरात)

(10) सन् 1916 में 11 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री मगनभाई चतुर भाई पटेल (गुजरात)

(11) सन् 1918 में 12 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री सदाशिव राव पवार, महाराजा देवास (मध्यप्रदेश)

(12) सन् 1919 में 13 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्रीमंत महाराज छत्रपति शाहूजी महाराज कोल्हापुर (महाराष्ट्र)

(13) सन् 1924 में 14 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्रीमंत तुकोजीराव पवार महाराजा देवास (मध्यप्रदेश)

(14) सन् 1926 में 15 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री रायबहादुर रामचंद्र विठ्ठलराव बांडेकर जस्टिक आप पीस एल, एल, सी, (महाराष्ट्र)

(15) सन् 1927 में 16 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री जगदेव राव पवार महाराजा देवास (मध्यप्रदेश)

(16) सन् 1928 में 17 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री वृन्दा लाल कटियार फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश)

(17) सन् 1929 में 18 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री जगदेव राव पवार महाराजा देवास (मध्यप्रदेश) फिर से,

(18) सन् 1930 में 19 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री रामचन्द्र राव, अर्जुन राव गोले, (महाराष्ट्र)

(19) सन् 1931 में 20 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री नामदेव एकनाथ नावले, (महाराष्ट्र)

(20) सन् 1933 में 21 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्रीमंत सदाशिव राव पवार महाराजा देवास (मध्यप्रदेश)

(21) सन् 1939 में 22 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री वासु दासू सिंह अधिवक्ता, (बिहार)

22) सन् 1944 में 23 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री डॉ. पंजाब राव देशमुख (महाराष्ट्र)

(23) सन् 1949 में 24 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री डॉ. खूबचंद बघेल (छत्तीसगढ़)

(24) सन् 1958 में 25 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्रीमती विमला देवी देशमुख (महाराष्ट्र)

(25) सन् 1960 में 26 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री रामदीन गौर (IAS) मध्यप्रदेश

(26) सन् 1961 में 27 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री कृष्ण कुमार देशमुख (मध्यप्रदेश)

(27) सन् 1966 में 28 वे अधिवेशन के अध्यक्ष श्री डॉ. खूबचंद बघेल (छत्तीसगढ़)

(28) सन् 1970 में 29 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री लक्ष्मण चंद्र सिंह, (बंगाल)

(29) सन् 1971 में 30 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री झांहाभाई पटेल, (गुजरात)

(30) सन् 1976 में 31 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री बालसौरी रेड्डी, (आंध्र प्रदेश)

(31) सन् 1978 में 32 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री के. आर. अमीन प्रोफेसर, (गुजरात)

(32) सन् 1980 और 1981 में 33 वें और 34 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री धनीराम वर्मा

(33) सन् 1983 में 35 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री नरेन्द्र तिगडे, मुम्बई (महाराष्ट्र)

(34) सन् 1987 में 36 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री देशराज कटियार, कानपुर (उत्तरप्रदेश)

(35) सन् 1931 में 37 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री बाबू महेंद्र सिंह पूर्व डीजीपी (उत्तरप्रदेश)

(36) सन् 1995 में 38 वें अधिवेशन के अध्यक्ष डॉ. बलिराम सिंह वाराणसी (उत्तरप्रदेश)

(37) सन् 2008 में 39 वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री जगदेव प्रसाद कनौजिया, कानपुर (उत्तरप्रदेश)

(38) सन् 2010 से 2019 तक 40, 41, 42, 43, 44, वें अधिवेशन के अध्यक्ष श्री एल पी पटेल भोपाल (मध्यप्रदेश)

(39) सन् 2020 में 45 वें अधिवेशन के अध्यक्ष डॉ बी एस निरंजन पूर्व (IAS)

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