आंखे जिस पल को तरसी थीं, वह दृश्य दिखाया योगी ने, उस सदन बीच खुलकर हिन्दू उत्कर्ष दिखाया योगी ने
मुझे यह कविता बहुत पसन्द आई आपको कैसी लगी खुद बताए ************* *आंखे जिस पल को तरसी थीं,* *वह दृश्य दिखाया योगी ने।* *उस सदन बीच खुलकर हिन्दू* *उत्कर्ष दिखाया योगी ने।।* *निज धर्म, कर्म पर गौरव है,* *ये सिखा दिया है योगी ने।* *जो मोदी ने शुरू किया,* *वो दिखा दिया है योगी ने।।* *बेशर्म जनेऊ धारी थे,* *जो इफ़्तारो में जाते थे।* *हाथों से तिलक मिटा करके जो,* *टोपी गोल लगाते थे।।* *वोटों की भूख जिन्हें मस्ज़िद* *दरगाहों तक ले जाती थी।* *खुद को हिन्दू कहने में जिनकी* *रूह तलक शर्माती थी।।* *उन ढोंगी धर्म कपूतों की* *छाती पर चढ़कर बोल दिया।* *क्यों ईद मनाऊं? हिन्दू हूं,* *ऐलान अकड़कर बोल दिया।।* *जड़ दिया तमाचा, और लिखी* *इक नयी कहानी योगी ने।* *लो डूब मरो, बंटवा डाला,* *चुल्लू भर पानी योगी ने।।* *संकेत दिखा है साफ़ साफ़* ...